फिर गाँव की ओर कुमार विमल
समाज में अपंनी धौंस ज़माने की चाह अधिकांश लोगों में होती है। आजकल तो शिक्षा भी धौंस जमाने की ही साधन भर रह गई है। कई लोगो के लिए
अच्छी
शिक्षा का अर्थ
कोई रौबदार नौकरी जैसे डी.एम , एसपी इत्यादि है। कोई धन से , कोई पद से तो कोई बल से अपनी इस इच्छा की पूर्ति करता है। जैसे धर्म अनेक है पर लक्ष्य एक ही है वैसे ही साधन अनेक है पर लक्ष्य एक धौंस जमाना है।
निर्मल बाबू धन से इस चाह की पूर्ति करने वाले व्यक्ति थे। वे धन का प्रदर्शन
कर समाज में अपनी धौंस जमाये हुए थे। महंगी गाड़ी में घूमते, आलीशान भवन में रहते , महंगी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग करते, कहीं जाते तो कहते कि बिना ऐ.सी. के उन्हें दिक्क्त होती है। लोगो को उन्होंने धन के प्रदर्शन से वशीभूत
सा कर दिया था। लोग उन्हें हसरत भरी निगाहों से देखते, उनकी चर्चा करते,उनसे मिलकर अपने आप को भाग्यवान समझते।
निर्मल बाबू धन के प्रदर्शन के प्रतिफल स्वरुप समाज में अतिरिक्त महत्व पाते।
निर्मल बाबू गाड़ियों के विक्रेता थे शहर के बीचो-बीच उनका एक भव्य शोरूम था । सलाना करोड़ो की आमदनी थी। ऐसे धनवान व्यक्ति के अगर लोग कद्रदान थे तो इसमें
कोई आश्चर्य नहीं ! परिवार में पत्नी के अतरिक्त एक पुत्र था। पुत्र का नाम राजकिशोर था निर्मल
बाबू ने उसे बड़े नाज से पाला था। उसकी हर इच्छाओं
को पूरा करना अपना धर्म समझते थे। उसके लिए खिलौने लाते, दाइयाँ रखते, शहर की महंगे स्कूल में भेजते। पुत्र को सम्पन्त्ता विरासत में मिली थी।
समय बीतता गया, राजकिशोर ने बाल्यावस्था से
किशोरावस्था में प्रवेश कियें। कॉलेज की शिक्षा के लिए पिता ने राजकिशोर को इंग्लैंड भेजा। वहाँ के नामी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय
में उनका दाखिला हुआ । पुत्र की विदेश शिक्षा पिता के लिए अपनी अमीरी दिखाने का एक और साधन सिद्ध हुआ। वह अक्सर अपनी मित्र मंडली में अपने पुत्र की
विदेश शिक्षा की चर्चा करते,पुत्र द्वारा भेजे गये फोटो को फेसबुक पर
साझा करते और सबों को बताते की लाखो-लाख तो केवल साल की फीस है
उस पर हॉस्टल फीस अलग से, कुल मिलाकर लगभग करोड़ का खर्च है, लोग
श्रद्धा से उनकी बातों को सुनते। इन चर्चाओं से उन्हें आत्मतुष्टि मिलती।
लगभग चार वर्षो के बाद राजकिशोर शिक्षा
ग्रहण कर वापस भारत लौटा। पिता अक्सर अपने मित्रों अथवा सम्बन्धियों से उसे मिलाते
और उसके विदेश में शिक्षा पाने के बारे में लोगो को बताते। शादी-ब्याह के अवसर का
तो वें भरपूर उपयोग करते, पुत्र को अपने मित्रों से मिलाते और गर्व से कहते मेरे बेटे ने इंग्लैंड से मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी की है।
पुत्र की विदेश शिक्षा निर्मल बाबू की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगाती।
धीरे-धीरे राजकिशोर
भी व्यापार में अपने पिता का हाँथ बटाने लगा। पिता के साथ वह भी शोरूम जाता,व्यापार में उन्हें सलाह देता। निर्मल बाबू को अब अपने पुराने कर्मचारियों की जगह अपने
पुत्र की सलाह ज्यादा समयोचित लगती। अक्सर अपने कर्मचारियों की सलाह को नजरअंदाज
कर वे अपने पुत्र की बात को मानते। उन्हें
लगता विदेश से शिक्षा ग्रहण किये हुए उनके पुत्र के समक्ष इन कर्मचारियों के सलाह का क्या महत्व?
अपने यहाँ शादियों में दहेज़ का काफी प्रचलन है। दहेज़ लेना शान की बात है और
अगर लड़का सरकारी नौकरी में है तो पूछो ही मत। आजकल तो सरकारी नौकरी वाले लड़के के
लिए एक चार-चक्का गाड़ी पक्का। लड़की वाले आर्थिक रूप से मजबूत और स्थाई कमाई वाले
लड़के के लिये ललायित रहते है, फलस्वरूप ऐसे लडको का परिवार मोटी दहेज की माँग करता
है। दहेज़ समाज का एक कलंक है जिसे समाज गर्व से अपने माथे पर लगाए हुए है। अनगिनत
जिन्दियाँ हर वर्ष इस दहेज दानव की वेदी पर अपनी कुर्वानी देने को विवश है।
हर साल लगन के समय गाड़ियों की बिक्री में काफी बढ़ोतरी होती। निर्मल बाबू को
लगन के समय करोडो की कमाई होती, फिर लगन समाप्त होते ही बिक्री में कमी आती, व्यापार सामान्य हो जाता। यह चक्र हर वर्ष चलता। इस वर्ष भी यही हुआ लगन आई कमाई बेतहाशा
बढ़ी फिर लगन उतरते ही सामान्य हो गई। पिता लगन के उपरान्त कमाई घटने पर भी हर
साल की तरह निश्चिन्त थे,उनके लिए यह हर साल की तरह ही था लेकिन
पुत्र चिन्त्तित था, कमाई का घटना उसके लिए चिंता का विषय था
वह विचारमग्न रहता। लगन न होने पर भी कमाई कैसे बढ़ाई जाये इसके लिए युक्तियाँ तलाशता रहता। काफी सोच विचार करने पर उसे एक युक्ति
सुझी।
अगले दिन पिता शोरूम में निश्चिन्त बैठे थे, पास बैठे अन्य
कर्मचारी गप्पे कर रहे थे। लगन भर उन लोगो को चैन न था, पुरे लगन देर दस बजे रात तक काम
किया था इन कर्मचारियों ने। इस समय काम कम था। अतः सभी निश्चिंत
से थे। अचानक राजकिशोर ने गंभीर भाव में पास बैठे पिता से कहा- “डैडी! आजकल व्यपार
में गिरावट आ गई है।” पर पिता ने निश्चिन्तता
से कहा-“हाँ अभी लगन नहीं है अगली लगन में फिर व्यपार में तेजी आयेगी यह तो हर साल
की बात है बेटा।” “यह हर साल की
बात है सोचकर जो आप इस मंदी को नजरंदाज करते है यही तो भूल है डैडी, हर साल-हर साल
कहने के बजाये सेल्स बढ़ाने के लिये हमें कोई मार्केटिंग स्ट्रेटेजी सोचनी होगी” –राजकिशोर
ने थोडा आक्रोश से कहा पिता ने असमंजस भरी निगाहों से पुत्र को देखा और कहा- “ ये मार्केटिंग
स्ट्रेटेजी क्या होती है बेटा?” बेटे ने विचारक की तरह अंग्रेजी में पिता
से कहा " It is an overall plan to achieve the maximum sales." पिता को कुछ समझ तो ना आया पर पुत्र की बातों से गर्व की अनुभूति हुई। पिता ने उत्साह से कहा बेटा मैं ठहरा गावँ का पढ़ा लिखा, मैं तुम्हारे बराबर कहाँ जानता हूँ? मुझे ये सब बातें कहाँ समझ में आती है, अतः तुम्हे जो समझ आयें, वह करो।
पिता की स्वीकृति
मिल जाने के बाद राजकिशोर अपने मार्केटिंग स्ट्रेटेजी को क्रियान्वित करने में
तत्परता से लग गये। उन्होंने सोचा कि पहले उन्हें अपने शोरूम के मार्केटिंग पर ध्यान देना होगा। शोरूम को प्रचारित करने हेतु शोरूम के आस पास लोगो की आवाजाही बढ़ानी होगी। काफी सोच विचार करने के उपरांत उसने एक
तरकीब सोची उसने सोचा क्यों न एक हाथी शोरूम के आगे बाँध दिया जाये, आने जाने वाले लोग एक नजर हाथी को देखने के लिये रुकेंगे, जिसके कारण उनके शोरूम के आस पास भीड़ एकत्रित होगी और उनका शोरूम ज्यादा से
ज्यादा प्रचारित होगा। अतः इस बार के सोनपुर के पशु मेला से वे एक हाथी खरीद लायें। हाथी काफी आकर्षक और भीमकाय था। विशाल सुदृढ़ शरीर, लम्बी सुढ,सफेद चमकते मोती से
दाँत, मदमस्त चाल देखने से प्रतीत होता कि साक्षात
भगवान गजानन का ही अवतार हों। शोरूम के आगे उन्होंने एक फूस की झोपड़ीनूमा सरंचना
का निर्माण करवाया और उस में गजराज का निवास बनाया गया। जैसे इत्र
की खुशबु ध्यान आकृष्ट कर लेती है वैसे ही गजराज के आकर्षण से वशीभूत हो लोग उसे निहारते रहते नतीजतन अब शोरूम के के आगे भीड़ रहती।
मार्केटिंग की उनका यह तरकीब काम कर गईं , शोरूम के प्रचार प्रसार में वृद्धि होने
लगी फलस्वरूप लगन न होने के बावजुद बिक्री में काफी इजाफा हुआ, लगन के बराबर आय तो न हुई पर आय में दृष्टिगोचर वृद्धि हुई। पिता फायदे से
ज्यादा पुत्र की काबिलियत से खुश थे, उन्हें लगता विदेश की शिक्षा काम आ रही है।
गर्व से पिता की छाती चौड़ी हो गई। जैसे जग जीत लिया। उन्हें लगा यही समय है
व्यवसाय का भार शिक्षित पुत्र को सौंप कार्यनिवृत हो जाना चाहिए। अतः निर्मल बाबू
एक दिन व्यवसाय का भार पुत्र को सपुर्द कर अपने गाँव चले गयें।
लाभ की चाह एक ऐसी प्यास है जो कभी तृप्त नहीं होती। राजकिशोर की सिर पर लाभ
का भूत सवार था, हर समय सोचता रहता कैसे अधिक से
अधिक लाभ प्राप्त किया जाये। कुछ ही दिनों के
बाद ऐसा लगने लगा की फायदे का ग्राफ जिस तेजी से आरम्भ में बढ़ा था उसमे अब वह तेजी
न रही और फायदे में कुछ स्थिरता सी आ गई है। काफी सोच-विचार करने के
उपरान्त उन्हें लगा की उनके व्यवसाय का ऑपरेटिंग
कॉस्ट(संचालन-व्यय) ज्यादा है अगर वे ऑपरेटिंग कॉस्ट को कुछ काम कर दें तो फायदा बढ़ जायेगा। काफी गहन चिंतन के बाद राजकिशोर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पुराने कर्मचारियों का वेतन
ज्यादा है उनके बदले नए लड़को को यहाँ नियुक्त किया जाये तो वे कम वेतन पर भी काम करने को राजी हो जायेंगे। इस तरह से ऑपरेटिंग कॉस्ट काफी कम हो जायेगा। एकाएक पुराने कर्मचारियों की छँटनी कर दी गई, उनके जगह नए लड़को की नियुक्ति हुई, बेरोजगारी के कारण वो कम वेतन पर ही काम करने को तैयार हो गयें। वे
कर्मचारी जो व्यवसाय के प्रसार के लिए कभी पसीना बहाये
थे आज सड़कों पर थे।
व्यवसाय में ग्राहकों के साथ मैत्रीपूर्ण विश्वासजनक सम्बन्ध का ही महत्व है।
मैत्रीपूर्ण विश्वसनीय सम्बन्ध वह पाश है जिससे ग्राहक बंधा रहता है। इसके आभाव में व्यवसाय विकसित नहीं होता। पुराने कर्मचारी
ग्राहकों के लिए विश्वसनीय चहरे थे। राजकिशोर जो व्यवसाय में नए थे अभी ग्राहकों में विश्वसनीयता प्राप्त नहीं कर पायें थे। अतः पुराने
कर्मचारियों के एकाएक चले जाने से उनसे सम्बन्धित
ग्राहक टूटने लगे। व्यवसाय धीरे धीरे मंद होने लगा। इधर मौका देख शहर के ही एक नेता ने
अपने एक शोरूम का उद्घाटन कर दिया। पुराने
कर्मचारियों को उसने हाथो-हाथ लिया। नतीजन उनसे सम्बंधित सभी ग्राहक अब नेता जी के शोरूम
में जुटने लगे। राजकिशोर जी का बाजार में अधिपत्य अब टूटने लगा। बाजारू प्रतियोगिता के लिए अभी वे पूरी तरह तैयार न थे, प्रतियोगी बाजार में वे अब पिछडने लगें। उनका व्यवसाय और मंद होता
गया। फायदे का स्तर निरंतर घटने लगा। राजकिशोर चिंतित रहने लगे। हर समय फायदे में
कमी का कारण ढूंढ़ने में व्यस्त रहते। आर्थिक संकट अपने
साथ - साथ कलह भी लाता है। अब राजकिशोर अकसर
बिना किसी कारण के भी कर्मचारियों को फटकारते। ऐ.सी. की हवा अब उन्हें फिजूलखर्ची लगती। अब हाथी के आहार पर किया जाने वाला खर्च भी उन्हें पैसो की बर्बादी ही लगती।
एक दिन उन्होंने अपने कर्मचारी को कह ही दिया -"यह पेटू हाथी व्यर्थ ही पड़ा-पड़ा ढाई मन आहार खाता है, खा-खा कर मोटा हुआ
जाता है, इस आलसी हाथी का आहार कल से कम कर दो।इस आलसी हाथी का आहार कल से कम कर दों।'' हाथी का आहार पहले से आधा हो गया पर कुछ
दिनों के बीतने के बाद भी हाथी के भीमकाय शरीर पर कोई विशेष अंतर न पड़ा। हाथी के
भीमकाय शरीर में कोई अंतर न देख राजकिशोर को लगा कि वह व्यर्थ ही हाथी के आहार पर
इतना ज्यादा खर्च किया करता था इसके लिए तो आधा भोजन भी काफी है। क्यों न इसके आहार को और कम कर दिया जाये। अब हाथी का आहार पहले से लगभग एक चौथाई ही रह गया। कुछ दिनों के
बीतते ही हाथी के भीमकाय शरीर में अंतर साफ-साफ दिखने लगा, चहरे की आभा घटने लगी, भीमकाय शरीर सिमटने लगा,चाल भी मंद होने लगी, गजराज का पुराना आकर्षण
बिल्कुल विलुप्त हो गया।
इधर व्यवसाय
धीरे-धीरे फायदे के बजाय नुकसान में बदलने लगा। हालत यह हो गई कि अबकी लगन में भी
व्यवसाय हानि में ही रहा। एक दिन राजकिशोर चिन्तावस्था में
शोरूम में बैठे थे, बाहर गर्म हवाएँ चल
रही थी।
अचानक बाहर से
धड़ाम की आवाज हुई, राजकशोर दौड़ कर बाहर की ओर भागे, पीछे -पीछे
कर्मचारी भी भागा। बाहर देखा तो आवाक रह गए
सामने गजराज
भूमि पर मूर्छित गिरा पड़ा है, दौड़ कर हाथी के करीब पहुँचे ,
हाथी के मुँख पर पानी छीटॉ
गया, पर हाय ! वह उठ ना सका। हाथी का कमजोर शरीर गर्म मौषम की गर्म हवाएँ ना
सह सका।
तमाम प्रयत्नों के बावजुद
भी हानि बाढ़ के पानी की तरह बढती ही रही। स्थिति को भाँप कर्मचारी भी इधर-उधर काम तलाशने लगे और धीरे-धीरे उनका साथ छोड़ने लगें।
समय बीत चूका
है। कोट- टाई लगा कंधे पर लैपटॉप लिये हुए एक सज्जन बाइक पर सवार हो तेजी से कहीं जा रहें है। वे शहर के एक आलीशान घर के समीप अपनी गाड़ी रोकते है। घर के गेट पर लिखा है कुत्ते से सावधान। सज्जन गेट
खटखटाते है। पास बैठा गॉर्ड गेट के करीब आकर पूछता है -"क्या बात है किनसे
मिलना है। " सज्जन ने विनम्रता से कहा-“मैं नेता जी के शोरूम का सेल्स मैनेजर हूँ मुझे आपके मालिक
से मिलना है" गार्ड ने झुँझला कर कहा -"वे अभी किसी से नहीं मिलते है।"
सज्जन -"एक बार पूछने की कृपा करे मैंने कॉल कर उनसे मिलने का समय लिया था।'' इतने में घर के मालिक वहाँ आ गए गार्ड ने सलाम कर मालिक से कहाँ – “ये
श्रीमान आपसे मिलना चाहते है।''
सज्जन ने
उत्सुकता से कहा -"सर आई ऍम राजकिशोर, मैं नेता जी के शोरूम का सेल्स मैनेजर हूँ, मैं आपको गाड़ियों के कुछ नय मॉडल के बारे में जानकारी देना
चाहता हूँ। इतना कह सेल्स मैनेजर राजकिशोर ने बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये तुरंत बैग से लॅपटॉप निकाल कर प्रेजेंटेशन देना प्रारंभ किया । घर के मालिक ने कुछ देर तो ध्यान से सुना फिर बीच में ही रोकते हुए कहा-" राजकिशोर जी
मुझे ये मॉडल पसंद नहीं। " कोई बात नहीं सर अभी और भी मॉडल है" इतना कह
राजकिशोर ने
लैपटॉप में स्लाइड्स को बदलना चाहा पर घर के मालिक ने
थोड़ा क्रुद्ध भाव में कहा -"कहा ना पसंद नहीं है " राजकिशोर ने मुस्कुराते हुए लैपटॉप को बंद किया और बैग में रख थैंक्स कह बाइक पर सवार हो चल दिया।
समय बीतता गया, इसी दौरान
राजकिशोर की शादी भी हो गई। दो बच्चे भी हो गए, समय के साथ
वे युवावस्था से प्रोढ़ावस्था में प्रवेश कर चुके थे। अब उनमे युवावस्था जैसा
उत्साह नहीं रहा, लेकिन काम का बोझ ज्यो का त्यों है, उपर से गृहस्थी की
जिम्मेदारी अलग, अत्यधिक काम, रोज की भागदौड़ ने उन्हें और अधिक कमजोर कर दिया है । अब वे जल्दी थक जाते, ज्यादा भागदौड़
नहीं हो पाती, लेकिन काम अब भी उतना ही है। रोज सुबह नौ बजे ऑफिस पहुंचना,
क्लाइंट्स का लिस्ट ले कर सभी को कॉल करना फिर चाहे तेज गर्मी हो या मूसलाधार बारिश ग्यारह बजे तक फिल्ड में निकलना
एक-एक से मिलना उन्हें गाडियों के बारे में समझा कर खरीदने के लिये राजी करना और
तब तक कॉल करते रहना जब तक की वह नेता जी के शोरूम से गाड़ी खरीद ना ले या
स्पष्ट ना न कह दें। रविवार को उन्हें घर
पर पूरे सप्ताह की रिपोर्ट बनाना होता जिसे सोमवार को नेता जी का लड़का देखता यदि
ग्राहक कम बने होते तो उन्हें डॉटता।
गर्मी का मौसम था। बाहर निकलने पर लगता
गर्म हवायें शरीर को झुलसा देंगी। ऐसी गर्मी
राजकिशोर जी के कमजोर शरीर को झकझोड़ देती जिसका प्रभाव उनके काम पर भी दिखता। अब
वे दिन भर में एक दों क्लाइंटों से ही मिल पाते,चेहरे पर थकावट के भाव रहते, आवाज
में धीमापन रहता, बाल बिखरे रहते, ओज क्षीण रहता। उनकी बातों में पहले जैसा आकर्षण
न था, ऐसे में वे क्लाइंट्स को प्रभावित भी न कर पाते। नतीजतन वे ज्यादा ग्राहक नहीं बना पाते।
अक्सर नेता जी का लड़का उन्हें डॉटता रहता।
सोमवार का दिन था, राजकिशोर जी सप्ताह भर की रिपोर्ट नेता
जी के लड़के को प्रस्तुत कर रहे थे, नेता जी राजकिशोर के परफॉरमेंस से काफी खिन्न
थे। उन्होंने झुझलाकर,फाइल लगभग फेकते हुए कहा-“यह क्या है? राजकिशोर जी!आप इस
हफ्ते केवल दो गाड़ी ही सेल करवा पाएं, और आप केवल दस क्लाइंट्स से ही मिल पाएं, आप
टारगेट से काफी पीछे है, पिछले हफ्ते में भी आप का यही रवैया था।” राजकिशोर जी
सर झुका कर खड़े थे,
सर झुकाकर ही, डरते-डरते धीरे से कहा-“सर अत्यधिक गर्मी के कारण फील्ड
में ज्यादा घूम नहीं पाया।” इतना सुनते ही नेता जी के लड़के का गुस्सा सातवे आसमान
पर चढ़ गया, अपना आपा खो बैठे और तेज आवाज में गुस्से से बोलें- “एक तो काम नहीं करते है, उपर से बहाना बनाते है, हम आपको
वेतन कोई खैरात में नहीं देते है, आपको परफॉर्म करना ही होगा अगर नहीं कर सकते है
तो छोड़ दीजिये नौकरी, हमारे
पास लोगों की कमी नहीं, एक से एक कैंडिडेट अपना रिज्यूमे दे रखे है, आपके भरोसे यह
शोरूम नहीं चल रहा
है।” राजकिशोर जी ने लगभग काँपते हुए कहा-“ नो सर,सॉरी सर,आई विल परफॉर्म सर,सॉरी सर।” “ओके यह अंतिम चांस है आपके लिये, इस वीक आप पांच गाड़ी
सेल करवायें अन्यथा बाहर जायें हमारे पास
बहुत सारे यंग ऍम.बी.ए. कैंडिडेट्स के
रिज्यूमे पड़े है, मै उनमे से किसी को रख लूँग।” राजकिशोर ओके सर कहते हुए बाहर आयें। दोपहर का समय था, बाहर तेज धूप थी, लेकिन
धूप की परवाह किये बिना बाइक पर सवार हो तेजी से निकल पड़े। दिन-भर दफ्तरों, दुकानों,कॉलेजों इत्यादि की
खाक छॉनते रहें,पकड-पकड कर लोगों को समझाते अधिकांश लोग मिश्रित या नकारात्मक जवाब
देकर आगे बढ जाते। शाम को थक हार
कर घर आ गए।चिंता उनके चहरे पर हमेशा व्याप्त
रहती थी अत: पत्नी भी उनकी मनोदशा भांप
ना पाई। रात भर चिन्ता मे सो ना पायें सोचते रहे किस तरह इस सप्ताह पाँच ग्राहक बनाया जायें। इसी बीच उनकी नजर पास सोयें बच्चो पर गई,और
आचानक उनकी आँखे भींग गई।
दिन बीतते गयें, यही क्रम चलता रहा।
आज शनिवार है, राजकिशोर जी अब तक तीन गाड़ियों को बेचवाने में सफल हो चुके
है अभी भी टारगेट पूरा करने के लिए दों ग्राहकों की जरूरत है। आज वो जल्दी
ही घर से निकल पड़े, नाश्ता भी ठीक से ना किया, पत्नी पूछती रही पर कुछ ना बताया।
आज बाइक वो कुछ धीरे-धीरे चला रहे थे, आचानक से बाइक एक पान के दुकान के समीप रोका
और एक सिगरेट खरीदा, सिगरेट सुलगा कर वहीं मेंज पर बैठ गयें, वैसे वे सिगरेट के
आदी ना थे। सिगरेट की कश लेते हुए सोचने लगें चार लोगों ने उन्हें सकारात्मक
प्रतिक्रिया दिया है, आज इन चारों से मिलूँगा इनमे से दों से भी बात बन जायें तो
काम हो जायेगा। यह सोचते ही उनके हौसले में कुछ वृद्धि हुई, सिगरेट फेंका और बाईक पर
सवार हो तेजी से चल दियें। लगभग ग्यारह बजें वें आज के अपने प्रथम क्लाइंट् के
आवास पर पहुंच गएँ, ये सज्जन मिलनसार और खुशमिजाज किस्म के व्यक्ति थे, उन्होंने गर्मजोशी
से राजकिशोर जी का स्वागत किया, चाय-पानी के लिये भी पूछा, राजकिशोर जी को किसी
क्लाइंट्स से ऐसा स्वागत कम ही नसीब होता था, वैसे तो वे इस तरह के स्वागत के लिये
आतुर रहते, लेकिन आज मन कही और था, इस स्वागत में भी आत्मसम्मान न था। सज्जन आराम
से चाय पीते और इधर-उधर की बाते करते। इधर राजकिशोर का मन बेचैन था, वह गाड़ी के
लिये हाँ सुनने के लिये अधीर थे। राजकिशोर बार-बार गाड़ी के विषय को छेड़ते मगर वो
सज्जन बात को कही और मोड़ देते अन्तत: लगभग आधे घंटे के वार्तालाप के बाद सज्जन ने
कहा कि वो गाड़ी खरीदने को तैयार है, लोन के लिये अर्जी दे रखी है,उम्मीद है आज
स्वीकृत हो जाए तो मैं रविवार को आपके शोरूम पर पधारू। सज्जन के बातों से राजकिशोर
के उम्मीदों को बल मिला। राम-सलाम कर बाहर निकले, मन में ढांढस बंधा। सोचे चलो आज
के पहले ही प्रयास में बात बन गई। फिर बाइक पर
सवार हो तेजी से निकल पड़े, आगे जाकर एक दुकान से बिस्कुट खरीदा खा कर पानी पिया और
आगे बढे। उम्मीद ने भूख को जागृत कर दिया था। कुछ देर के बाद वे आज के अपने दुसरे
क्लाइंट के दरवाजे पर थे। ये सज्जन कुछ कठोर स्वाभाव के व्यक्ति थे, राजकिशोर जी
को बैठने के लिये भी ना पूछा, उलटे झल्ला कर कह दिया –“ मुझे कोई मॉडल पसंद नहीं
आया, आप कृपा कर जायें।” यह वाक्य राजकिशोर जी के लिए शूल चुभने के सामान था, पर
मन को फिर ढांढस बँधाया और बाइक की ओर बढ़ गएँ।
दोपहर के दो बज चुके थे,तेज धूप शरीर को
झुलसा रही थी,सडक वीरान थी,एक-दों लोग कहीं-कहीं दिखाई देते थे। लेकिन राजकिशोर जी
अभी भी तेजी से बाइक दौडायें जाते थे। बेचैन मन को धूप की परवाह कहाँ! तीसरे क्लाइंट का घर ज्यादा दूर ना था अत:
पहुँचने में ज्यादा देर भी नहीं लगी।यह क्लाइंट काफी सम्पन्न और शोकीन किस्म का
व्यक्ति था, फोन पर बात-चीत से राजकिशोर जी ने यह अनुमान लगा लिया था कि इसे एक नई
गाड़ी की सख्त जरूरत है, उन्हें पूरा भरोसा है कि यहाँ बात बन जायेगी। पर यह क्या!
यहाँ तो ताला लगा है। राजकिशोर जी का मन व्याकुल हो उठा तुरंत जेब से मोबाइल निकला
और इस सज्जन को कॉल लगाया, सज्ज्जं ने कॉल रिसीव किया ही था कि राजकिशोर ने बेताबी
से कहा- “मै राजकिशोर सर, आपसे गाड़ी के विषय में बात हुई थी सर, आपने आज मॉडल्स के
बारे में बतलाने को कहा था सर, मै आपके घर के दरवाजे पर खड़ा हूँ, आप कहाँ है सर?”
“अच्छा-अच्छा राजकिशोर जी, कहा तो था, पर देखो ना पत्नी बहुत जिद्द कर रही थी मूवी
दिखाने के लिये, इसीलिए इधर प्रकाश मॉल आ
गया हूँ, लौटते-लौटते शाम हो जायेगी, आप ऐसा करें अगले वीक आ जायें।” इधर राजकिशोर
जी का सब्र टुटा जा रहा था, विनम्रता से बोलें-“सर मै ही वहां आ जाता हूँ?” “
अच्छा –अच्छा आ जाइए, एक घंटे में मूवी समाप्त हो जायेगी तभी हम मिल लेगे उसके बाद
हमें शौपिंग के लिये भी जाना है।” “ ओके सर मैं पहुँच रहा हूँ”- राजकिशोर जी ने भक्तिभाव से कहा। प्रकाश मॉल
वहाँ से लगभग बीस किलोमीटर दूर था। राजकिशोर जी तेजी से बाइक भगाएं जा रहें थे, तेज
धूप थी पर परवाह कहाँ? भूख-प्यास तो पहले ही भूल चुके थे। अपना उत्साह बनाए रखने के लिए मन में बार-
बार प्रेरक विचार जैसे कर्म ही पूजा है,करो या मरो तुम जीत सकते हो इत्यादि लाते
और तेज गर्मी की परवाह किए बिना गाड़ी भगाये जाते। अब वो लगभग आधी दुरी तय का लिए
थे आधी और बाकी थी, शरीर अकड रहा था, धूप से सर गर्म हुआ जाता था, पसीने से शरीर
लतपत था मगर राजकिशोर बाईक भगाएं जा रहें थे, मन में धुन सवार था। दुरी घटती जा
रही थी आस बढती जा रही थी मगर ना जाने कब उनकी आँखे बंद हो गई, शरीर जवाब दे दिया
वो मूर्छित हो सड़क पर गिर पड़े।
आँखे खोलीं तो पाया, पत्नी उनके सिहराने
बैठी है, हाथ पर पट्टी बंधी है,पानी चढाया जा रहा है। “अरे! मैं यहाँ कैसे आ गया,
मुझे जाने दो मुझे क्लाइंट्स से मिलने जाना है।” “ भगवान के लिये चुप हो जाईयें,
दिन भर भाग-दोड कर ये क्या हाल बना लिया है आपने , वो तो शुक्र है पड़ोस के शर्मा
जी का जो आपको सड़क पर पड़ा देख पहचान लिया और हॉस्पिटल ले आएं।” इतना कह राजकिशोर
जी पत्नी फफक-फफक कर रोने लगी। राजकिशोर ने पत्नी का हाथ पकड़ते हुए प्यार से कहाँ –“
तुम व्यर्थ चिंता करती हो मुझे कुछ नहीं होगा।”
शुक्र है उन्हें कोई अंदरूनी चोट नहीं
आई थी केवल हाथ और पैर छिल गएँ थे
लगभग दो दिनों के बाद राजकिशोर हॉस्पिटल
से घर लौट आए, स्वस्थ है मगर पट्टी अभी भी बंधी हुई है। इधर दुर्घटना का समाचार
सुन उनके वृद्ध पिता निर्मल बाबू भी गाँव से आ गए थे। घर में बैठक लगी है निर्मल
बाबु उपदेश के लहजे में बोल रहें है,
राजकिशोर जी बेड पर लेटे है, पत्नी कमरे के दरवाजे पर खड़ी है, दोनों बच्चे
मासूमियत से पिता को देख रहें है। निर्मल बाबू -“ इतनी भाग-दोड करने से क्या लाभ जब शरीर को ही
आराम ना मिलें? हम जीने के लिए पैसा कमाते है, ना की पैसा कमाने के लिए जीते
है,अत: यह भाग-दोड छोड़ो और मेरे साथ गाँव चलो, वही अपने खेत में खेती करो।”
राजकिशोर शुरू में तो गाँव जाने को तैयार ना हुए,लेकिन पिता के सम्मुख उनकी एक ना
चली, सपरिवार गाँव की ओर प्रस्थान किया,वहीँ पिता के साथ कृषि कार्य शुरू किया, दो
मवेशी भी पालें। गाँव की शुद्ध हवा और गाय
के शुद्ध दूध ने उन पर खूब असर किया। जैसे बारिश के पानी से सूखे पौधे खिल उठते है
वैसे ही गाँव की हवा और गाय के शुद्ध दूध का असर उनके शरीर पर भी हुआ, कमजोर काया
खिल उठी, चहरे की चमक लौट आई।
इधर नेता जी के लड़के ने एक नवयुवक को
उनके स्थान पर रख लिया है। लड़का बीस-बाईस साल का सुन्दर नौजवान है, एम.बी.ए किया
है और धाराप्रवाह अंगेजी बोलता है,अब राजकिशोर की जगह वह बाइक पर सवार हो टारगेट
पूरा करने निकलता है।
क्रमश:
जारी....।
कुमार विमल